लेखनी कविता - लाल क़िला - बालस्वरूप राही
लाल क़िला / बालस्वरूप राही
ताजमहल है कविता जैसा, लाल किला इतिहास है।
लाल किले का पत्थर पत्थर
कहता एक कहानी है,
शाहजहाँ के ठाट-बाट की
यह बेजोड़ निशानी है।
शहंशाह सुनता था सबकी, मिलता था हर एक से,
है दीवाने-आम यहाँ तो वह दीवाने-खास है।
यह धरती पर स्वर्ग कहाता,
इसका रूप अनोखा है,
वास्तुकला का एक नमूना
हर मेहराब, झरोखा है।
फर्श, बुर्जियाँ, छत, दरवाजे, है हर चीज कमाल की,
इसके एक-एक हिस्से में सुन्दरता का वास है।
हम स्वतंत्रता दिवस मनाते
यही तिरंगा फहरा कर,
पूरा देश गूँजा देते है
हिल-मिल जन-गण –मन गाकर।
किसमे इतना दम है इसको आँख उठाकर देख ले,
हर दुश्मन से टकराने की ताकत इसके पास है।